आज का दिन उन माताओं के लिए विशेष है, जिन्होंने अपनी संतान की लंबी उम्र, सुख, और समृद्धि की कामना करते हुए निर्जला जीवित्पुत्रिका व्रत रखा है। यह व्रत एक माँ के अटूट प्रेम, बलिदान, और संतान के प्रति उसकी अनमोल प्रार्थना का प्रतीक है। इस कठिन तपस्या में माताएं 36 घंटे तक बिना अन्न और जल ग्रहण किए, अपने बच्चों की सुरक्षा और उनके बेहतर भविष्य के लिए भगवान जीमूतवाहन की आराधना करती हैं।
यह है व्रत कथा
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व केवल धार्मिक मान्यताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मातृत्व की गहराई को छूता है। इस व्रत की पौराणिक कथा महाभारत काल से जुड़ी है। जब अश्वत्थामा ने पांडवों के शिविर में पांच बालकों को मार डाला, तो उसने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी ब्रह्मास्त्र चलाया। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उस अजन्मे बालक को पुनः जीवित कर दिया। इस चमत्कारी घटना के बाद उस बच्चे का नाम ‘जीवित्पुत्रिका’ रखा गया। इस कथा के माध्यम से यह व्रत माताओं को यह संदेश देता है कि उनके बच्चों की सुरक्षा भगवान के आशीर्वाद से होती है।
इस तरह किया जाता है व्रत
यह व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। माताएं बिना अन्न या जल के पूरे 36 घंटे तक निर्जला व्रत करती हैं। इस दौरान उनका समर्पण, उनकी ममता और उनके बच्चों के प्रति असीम प्रेम हर किसी को भावुक कर देता है। यह वह समय होता है जब माताएं अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति का परीक्षण करती हैं, और उनके त्याग का प्रमाण देती हैं।
व्रत की धार्मिक विधि और परंपराएं
बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में यह व्रत विशेष रूप से मनाया जाता है। मिथिला की महिलाएं इसे विशेष रूप से मानती हैं। व्रत शुरू करने से पहले ओठगन की परंपरा निभाई जाती है, जिसमें परिवार के सदस्य चूड़ा-दही का सेवन करते हैं। इसके बाद महिलाएं पितराइन सुहागिन महिलाओं को भोजन कराती हैं और तेल व खली (खैर) चढ़ाती हैं। व्रत के दौरान माताएं भगवान जीमूतवाहन की कथा सुनती हैं, जो त्याग और बलिदान की प्रेरणा देती है।
जानें कब होगा व्रत का पारण
जो महिलाएं आज यानी 25 सितंबर को अष्टमी तिथि का व्रत कर रही हैं, उनका पारण कल सुबह सूर्योदय के बाद किया जाएगा। बुधवार शाम 5:25 बजे के बाद व्रत समाप्त होगा, और फिर माताएं अपने निर्जला व्रत को तोड़कर अन्न-जल ग्रहण कर सकेंगी। इस व्रत का समापन माताओं के लिए एक सुखद अनुभव होता है, क्योंकि उनकी तपस्या और प्रार्थना का फल उन्हें अपने बच्चों की दीर्घायु और समृद्धि के रूप में मिलता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत: मातृत्व का आदर्श रूप
यह व्रत सिर्फ धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि मातृत्व के उस आदर्श रूप का उत्सव है, जो निस्वार्थ प्रेम, त्याग, और तपस्या से परिपूर्ण होता है। इस व्रत को करने वाली हर माँ अपने बच्चे के लिए हर कठिनाई को सहने के लिए तैयार रहती है। उनका यह बलिदान हर किसी को प्रेरणा देता है, और समाज में माताओं के प्रति सम्मान और आदर को बढ़ाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत के इस पवित्र अवसर पर, हम सभी माताओं की तपस्या और उनके संतान के प्रति असीम प्रेम को नमन करते हैं। भगवान जीमूतवाहन हर माँ की प्रार्थना सुनें और उनकी संतान को दीर्घायु, सुख, और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करें।